प्रेम और शिवत्व

जिस तरह से हजारों चोटों और सैकड़ों बेवफ़ाइयों के बाद भी " प्रेम " शास्वत है , सत्य है , अडिग है , एक प्रेम ही है जो सम्पूर्ण विश्व का आधार है , मनुष्य के सभी भावों में प्यार का भाव सबसे अधिक बलशाली होता है , लोग दुश्मनी पीढ़ियों निभाते हैं और प्रेम में कभी कभी अपने प्राणों का परित्याग कर सदा के लिए अमर हो जाते हैं , प्रेम की कहानियाँ " अमरत्व " लेकर जन्म लेती हैं , प्रेम और शिव में ज्यादा अंतर नहीं है , जैसे शिव का अर्थ होता है , " जो नहीं है "।

जिसे विज्ञान आज डार्क मैटर कहती है हिन्दू धर्म में उसी अनछुए , ख़ाली दिखता है पर होता नहीं , हर प्रकाश का कोई स्रोत होता है पर अंधकार का कोई स्रोत नहीं होता , वो स्वयं में सत्य है , शिव का अर्थ बस इतना सा ही है , उसी तरह से क्रोध , काम , तृष्णा , ईर्ष्या सबका कुछ ना कुछ स्रोत होता है पर प्रेम शास्वत होता है , पर आज इसी प्रेम को लेकर लोगों के मन में बाधाएँ होती हैं , सवाल होते हैं , अड़चने होती हैं , जितना प्रेम को बदनाम किया गया है शायद शिव को भी उतना ही छला गया है ,

हमारा मन ये प्रश्न तो कर लेता है कि शंकर तो भाँग खाया करते थे पर हमें शिव, सदाशिव और शंकर में अंतर नहीं पता , हम कभी ये सोचते ही नहीं है कि जिसे आदियोगी कहा गया है , जो हमेशा परमानंद की स्थिति में हो वो नशे में कैसे योग कर सकेगा ? अरे शंकर तो वो हैं जिनके दाहिनी जंघे पर माँ पार्वती बैठी होती हैं पर वो सप्तऋषियों को ज्ञान दिया करते हैं अध्यात्म पर मोक्ष पर , बिना किसी अपवित्रता के , शंकर का अर्थ है सभी भौतिकता को धारण करते हुए भी सबसे पवित्र होना ! जिसने शंकर को समझ लिया समझो प्रेम को समझ लिया और जिसने प्रेम को समझ लिया उसके मन के सारे विकार खुद ख़त्म हो जाते हैं । प्रेम का अर्थ है , जो दिखता नहीं जिसका कोई स्रोत नही है वो बस शाश्वत आपके मन की गहराइयों में योग मुद्रा में लीन है , जब उसपर धक्का लगता है तो आपकी शरीर नहीं पूरी आत्मा हिल जाती है , प्रेम का प्रकटीकरण उसी रूप में उसी मात्रा में आप कभी नहीं कर सकते , प्रेम में हार-जीत की कोई भावना नहीं होती , प्रेम में पा लेने की ख़ुशी और खो देने का ग़म भी नहीं होना चाहिए , आपका प्रेम आपके अंदर है , उस प्रेम का नाश भी नहीं हो सकता , प्रेम का अर्थ बदला लेना भी नही होता , बद्दुआ देना भी नहीं होता ," प्रेम आपके हृदय में योग मुद्रा में बैठा हुआ समस्त मानवीय भावनाओं से मुक्त एक ऐसा अंधकार है जिसका कोई स्रोत नहीं है " इसे लेकर किसी भी तरह की इच्छा अनिच्छा करना व्यर्थ है !
                       

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