बस... बातें करो
कई बार होता है न कि हम किसी Conversation में Struck हो जाते हैं, और फिर हमें यह सूझता ही नहीं कि अब आगे क्या बात किया जाए। जी हां… वही जहां हमारे "और बताओ" का जबाव आता है… "मैं क्या बताऊँ, मेरे पास कुछ है ही नहीं बताने के लिए" तो उन से ये कहें कि…
बोलो कुछ, अपने घर क बाहर की नजारों की बातें करो,
जहां मनपसंद
पकवान मिलते हैं तुम्हारे,
उन बाजारों की बातें करो,
जहां गए थे कुछ
दिन पहले तुम घूमने, उन पहाड़ों की बातें करो,
दर्द में कितना
रोये हो तुम, उन ग़मों की बातें करो,
ख़ुशी में जब तुम
उछल गए थे, उन पलों की बातें करो,
लिख-लिख के जो
तुमने मिटा दिया, मुझसे उन ख़तो की बातें करो,
छोड़ दिया
जिन्होंने तुम्हें अपना बना कर, उन अपनों की
बातें करो,
मुझे सुनना है
तुम्हें, तुम अपने किसी मज़ेदार सफ़र की बातें करो,
मैं आँखों से भी
सुन लूंगा, तुम नजरों से बातें करो,
कुछ अपना बताओ, कोई किस्सा बताओ, कोई इधर उधर की
बातें करो,
बिना सोचे तुम
बोलो, बस आज दुनिया भर की बातें करो,
आवाज़ सुननी है
तुम्हारी, बात सुननी है तुम्हारी,
मन अगर मिलने का
हो तो, मुलाकातें करो,
मौसम की, बरसात की, हाल की, हालात की,
जो दिल में आए, वो सब बातें करो,
बस…बातें करो।
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