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बिहार, दिल से...

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  प्रिय बिहार , सादर प्रणाम ! बिहार दिवस के इस शुभ अवसर पर , मैं तुमसे कोसों दूर बैठा तुम्हें याद कर रहा हूँ। जीवन की दौड़ में आगे बढ़ने की चाह ने मुझे तुमसे दूर कर दिया , लेकिन मेरा मन आज भी तुम्हारे ही आँगन में भटकता रहता है। कभी पढ़ाई के बहाने तुमसे दूर हुआ , तो अब नौकरी की मजबूरियों ने मुझे और भी दूर कर दिया। लेकिन सच कहूँ तो , यह दूरी सिर्फ भौगोलिक है , मेरे मन से , मेरी आत्मा से तुम कभी अलग नहीं हुए। जब पहली बार घर से बाहर निकला था , तो लगा था कि कुछ वर्षों बाद लौट आऊँगा। लगा था कि यह बस एक अस्थायी सफर होगा , लेकिन समय के साथ भागदौड़ बढ़ती गई और लौटने के सपने भी धुंधले होते गए। आज जब किसी बड़े शहर की सड़कों पर चलता हूँ , ऊँची इमारतों के बीच अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता हूँ , तब भी मन के किसी कोने में तुम्हारी कच्ची गलियों की मिट्टी की सौंधी खुशबू बसी रहती है। कभी - कभी मन करता है कि फिर से आरा के रमना मैदान...