बिहार, दिल से...

 

प्रिय बिहार,

सादर प्रणाम!

बिहार दिवस के इस शुभ अवसर पर, मैं तुमसे कोसों दूर बैठा तुम्हें याद कर रहा हूँ। जीवन की दौड़ में आगे बढ़ने की चाह ने मुझे तुमसे दूर कर दिया, लेकिन मेरा मन आज भी तुम्हारे ही आँगन में भटकता रहता है। कभी पढ़ाई के बहाने तुमसे दूर हुआ, तो अब नौकरी की मजबूरियों ने मुझे और भी दूर कर दिया। लेकिन सच कहूँ तो, यह दूरी सिर्फ भौगोलिक है, मेरे मन से, मेरी आत्मा से तुम कभी अलग नहीं हुए।

जब पहली बार घर से बाहर निकला था, तो लगा था कि कुछ वर्षों बाद लौट आऊँगा। लगा था कि यह बस एक अस्थायी सफर होगा, लेकिन समय के साथ भागदौड़ बढ़ती गई और लौटने के सपने भी धुंधले होते गए। आज जब किसी बड़े शहर की सड़कों पर चलता हूँ, ऊँची इमारतों के बीच अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता हूँ, तब भी मन के किसी कोने में तुम्हारी कच्ची गलियों की मिट्टी की सौंधी खुशबू बसी रहती है।

कभी-कभी मन करता है कि फिर से आरा के रमना मैदान में दोस्तों के साथ बैठूं, Collectorate  तालाब के किनारे टहलूं, या किसी नुक्कड़ पर बैठकर गरमा-गरम लिट्टी-चोखा का स्वाद लूं। याद आती है वो सुबह की ठंड, जब गाँव के खेतों में ओस की बूँदें चमकती थीं, जब गली के हर घर से छठी मैया के गीत गूंजते थे, जब माघ की रातों में अलाव के पास बैठकर बातें होती थीं। लेकिन अब, इन सब यादों को बस दिल में संजोए रखता हूँ।

तुम्हारी संस्कृति और विरासत पर गर्व होता है। यह वही भूमि है, जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया, जहाँ महावीर ने अहिंसा का संदेश दिया, जहाँ गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ, जहाँ चाणक्य की नीति ने पूरे भारत को एक सूत्र में बाँधने का सपना देखा। यही धरती है, जहाँ नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने ज्ञान की रोशनी फैलाई। तुमने इतिहास रचा, और आज भी तुम्हारी विरासत हमें गर्व से भर देती है। तुम्हारे लोकगीत, तुम्हारे मेले, तुम्हारी सादगी, तुम्हारी संघर्षशीलता; सब कुछ मुझे फिर से अपनी जड़ों की ओर खींचती है। कभी-कभी जब यहाँ किसी को यह कहते सुनता हूँ कि "बिहारी लोग मेहनती होते हैं," तो मन गर्व से भर जाता है। लेकिन फिर एक टीस भी उठती है कि मैं खुद उस मिट्टी से इतनी दूर क्यों हूँ, जो मुझे सबसे ज्यादा प्रिय है?

बिहार सिर्फ मेरा जन्मस्थान नहीं, मेरी पहचान है। मेरा अस्तित्व है। यहाँ की मिट्टी की खुशबू मेरे अंदर बसी हुई है। चाहे जहाँ भी जाऊं, कितनी भी ऊँचाइयाँ छू लूँ, लेकिन अंत में लौटकर वहीं आना चाहता हूँ, जहाँ मेरा मन बसता है। मुझे यकीन है कि एक दिन मैं लौटूंगा। नौकरी की भागदौड़ से, इस दौड़ते-भागते जीवन से एक दिन वापस अपनी मिट्टी में लौटकर फिर से वही अपनापन महसूस करूंगा। जहाँ हर गली अपनी लगे, जहाँ हर त्योहार में आत्मीयता हो, जहाँ रिश्तों में कोई बनावट हो।

आज भले ही मैं तुमसे दूर हूँ, लेकिन मेरे हर सपने की जड़ें तुममें ही हैं। और एक दिन, जब ये सपने पूरे होंगे, तो मैं उसी मिट्टी में वापस आऊँगा, जिससे मैंने जीवन की पहली सीख ली थी।

 

तुम्हारा ही,

एक बिहारी, जो तुमसे दूर होकर भी हमेशा तुम्हारा रहेगा।


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