पहली नौकरी

पहली नौकरी वाकई में एक लापरवाह लौंडे को एक जिम्मेदार बेटे में बदल कर रख देती है। जिसके लिए वो अपना घर छोड़ कर, कभी कभी आने वाले पराए हो जाते हैं। यह एक एहसास दिलाती है कि वाकई पैसा पेड़ पर नहीं उगता,। यह हर काम करने वाले के प्रति आदर और सम्मान बढ़ा देता है। अब उसे जद्दोज़हत करता हर एक इंसान चाहे वो Pamplete बांटने वाला हो, या Marketing के लिए Call करने वाला, सब में उसे घर चलता एक बाप, या अपने परिवार के लिए रोटी कमाता एक बेटा दिखता है। उसे इस बात का एहसास होता है कि, अपनी तरह उन सब की भी रोजी रोटी है। अब उन्हें इस बात का एहसास होता है कि अपनी तरह उन सब की भी रोज़ी रोटी है। यह उन्हें इस बात का एहसास दिलाती है कि क्यों पिताजी एक Shirt, Collar फटने तक चलाते थे। कैसे महीने के अंत में पैसे न होने पर Adjust किया जाता है, और कैसा लगता है जब साल भर दिन रात एक कर देने वाली मेहनत के बाद भी कुल जमा 2500  Per Month हीं बढ़ पाते हैं। अब वो हर छोटी से छोटी चीज़ के लिए पिता से ज़िद करने वाले लड़के से बदल कर, मैं बिल्कुल ठीक हूं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है यहां, आप लोग अपना ख़्याल रखिएगा, बोलकर अपनी जरुरतों को अच्छे से छुपाना सीख जाता है। छुट्टी के दिन बैठे बैठे सोचता है कि काश, कोई Reset Button हो जिस से वो वापस पहुंच जाए  और फिर उन ग़लतियों को न दुहराये जो उसने की है। पर अगले हीं पल ज़िम्मेदारियाँ और , यह एहसास कि ऐसे एक ठीक ठाक ज़िन्दगी बनाने में और इतने साल लगेंगे, एक अलार्म की तरह झकझोर देती है। और उसी के साथ वो गले में I Card डालकर इस तेजी रफ़्तार से भागते हुए शहर से तालमेल मिलने यह सोचकर चल देता है कि, छोड़ो यार, जो होगा देखा जाएगा।

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