माफ़ी मत समझना

कभी-कभी कुछ बातें दिल में इस कदर बैठ जाती हैं कि वक्त बीत जाने के बाद भी वो वहां से हटती नहीं। इंसान भूल जाता है किसने क्या कहा था, किसने क्या वादा किया था, लेकिन ये बिल्कुल नहीं भूलता कि जब उसे सबसे ज़्यादा किसी की ज़रूरत थी, तब किसने कैसा बर्ताव किया था। शब्द तो वक्त के साथ धुंधले पड़ जाते हैं, लेकिन व्यवहार, वो हमेशा याद रह जाता है। हम सबके जीवन में कुछ ऐसे लोग ज़रूर होते हैं, जिनसे हमें बहुत उम्मीदें होती हैं। हम सोचते हैं कि ये लोग हमारे अपने हैं, मुश्किल में हमारे साथ खड़े होंगे, हमारी बात समझेंगे, और ज़रूरत पड़ी तो हमारे लिए बोलेंगे। लेकिन जब वही लोग किसी मोड़ पर हमें अकेला छोड़ देते हैं, हमारी सच्चाई जानते हुए भी चुप रहते हैं, या दूसरों के साथ खड़े हो जाते हैं, तब जो चोट लगती है, वो दिखती नहीं, but महसूस होती है और बहुत देर तक महसूस होती है। ज़िंदगी में कई बार ऐसा होता है कि वही लोग, जिन्होंने कभी हमें नजरअंदाज किया था, वक्त बीतने के बाद फिर से सामने आते हैं, और ऐसे मिलते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं। एक मुस्कान, एक हल्की-सी बात, और फिर पुराने रिश्ते की याद दिलाते हैं। लेकिन शायद उन्हें नहीं पता कि उस एक मुस्कान से ज़ख्म नहीं भरते। मुस्कुराना एक आदत हो सकती है, एक शिष्टाचार हो सकता है, पर उसका मतलब ये नहीं कि हम सब कुछ भूल चुके हैं।

मुंबई के एक प्राइवेट बैंक में निखिल नाम का एक लड़का काम करता था। बहुत शांत, सरल और अपने काम से काम रखने वाला। उसे ज़्यादा बातें करना पसंद नहीं था, लेकिन अपने काम को लेकर वो बहुत समर्पित था। उसकी ब्रांच में अनुजा नाम की एक नई लड़की आई, तेज़, समझदार और बातों से सबका दिल जीतने वाली। धीरे-धीरे दोनों की बातचीत होने लगी। निखिल को अनुजा अच्छी लगने लगी, मगर उसने कभी कुछ कहा नहीं। वो बस अपनी तरफ़ से उसका ध्यान रखता, छोटे-छोटे कामों में मदद करता, और जब ज़रूरत होती तो बिना कहे उसके साथ खड़ा रहता। निखिल को लगता था कि अनुजा उसकी भावनाएं समझती है। शायद वो भी उसे थोड़ा-बहुत पसंद करती है, या कम से कम उसकी केयरिंग नेचर की कद्र करती है। पर सब कुछ तब बदल गया जब ब्रांच में एक दिन एक गलती हुई। वो गलती निखिल की नहीं थी, लेकिन नाम उसका गया। ये वही वक्त था जब निखिल को सबसे ज़्यादा किसी अपने के साथ की ज़रूरत थी। उसे लगा था कि अनुजा सच बोलेगी, मैनेजमेंट के सामने खड़ी होगी और बताएगी कि गलती उसकी नहीं है। लेकिन अनुजा चुप रही। उसने कुछ नहीं कहा। निखिल की इमेज पर असर पड़ा, उसे समझाया गया, डांटा गया, और उसका आत्मविश्वास धीरे-धीरे टूटने लगा। सबसे ज़्यादा दर्द उसे उस चुप्पी से हुआ जिसे वो सबसे अपना समझता था। वो चुप्पी चीखती रही उसके अंदर। समय बीता। धीरे-धीरे सब फिर अपने-अपने काम में लग गए। एक दिन अनुजा फिर से मुस्कुराकर उससे ऐसे मिली जैसे कुछ हुआ ही हो। बोली, “अब पहले जैसे नहीं रहे तुम बहुत बदल गए हो। निखिल भी मुस्कुरा दिया। लेकिन अब उस मुस्कान में पहले जैसा अपनापन नहीं था। अब उसमें एक दूरी थी, एक समझ थी कि लोग जरूरत के हिसाब से कैसे बदलते हैं। उस मुस्कान के पीछे जो चल रहा था, वो सिर्फ निखिल जानता था, बर्ताव सबके याद हैं मुझको, मुस्कुरा के मिलने को माफ़ी मत समझना…”

ये कहानी सिर्फ निखिल की नहीं है। हम में से हर कोई कभी कभी ऐसी किसी स्थिति से गुज़रा है। हमने भी वो लोग देखे हैं जो वक्त आने पर चुप रहे, साथ नहीं दिए, और फिर वक्त बीत जाने के बाद ऐसे लौटे जैसे कुछ हुआ ही नहीं। लेकिन सच तो ये है कि हम सबके अंदर एक कोना ऐसा होता है जहां ये बर्ताव दर्ज हो जाते हैं। हम भले ही फिर से मिलते हैं, बात करते हैं, मुस्कुराते हैं, but उस मुस्कान में अब वैसी बात नहीं होती। वो सिर्फ एक सामाजिक औपचारिकता होती है। लोग सोचते हैं कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाता है। लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि वक्त घाव भरता है, पर निशान नहीं मिटाता। हम माफ़ तो कर सकते हैं, क्योंकि हमें अपनी शांति प्यारी होती है, पर हम भूल नहीं सकते। जब भरोसे को तोड़ा जाता है, तो वो दोबारा पहले जैसा नहीं बनता। वो टूटे हुए कांच की तरह होता है, जिसे जोड़ने पर भी दरारें दिखती हैं। इसलिए जब आप किसी से मुस्कुराकर मिलें, तो ये मत समझिए कि सामने वाला सब भूल गया है। हो सकता है उसने सिर्फ आपके लिए अपने दिल में जगह बंद कर दी हो। क्योंकि इंसान वही चीज़ दोबारा नहीं छूता जिससे उसे एक बार चोट लग चुकी हो। हम सब इस दुनिया में अपनी-अपनी लड़ाइयाँ लड़ रहे हैं। कोई दिखाता है, कोई छुपा लेता है। कोई मुस्कुराकर सब कुछ कह देता है, और कोई मुस्कुराकर सब कुछ छुपा लेता है। ज़िंदगी में सबसे ज़रूरी है किसी का बर्ताव, क्योंकि वही तय करता है कि हम उसे कितनी इज्जत, कितनी जगह, और कितना भरोसा दे सकते हैं। शब्दों से ज़्यादा असर इंसान के व्यवहार का होता है। इसलिए जब कभी किसी से मिलें, तो ऐसा व्यवहार करें कि जब वो मुस्कुराकर आपको देखे, तो उसका मन ये ना कहे, मुस्कुरा के मिलने को माफ़ी मत समझना…” हम सब कहीं कहीं इस सच से गुज़र चुके हैं। यही ज़िंदगी की परतें हैंजो सिखाती हैं, तोड़ती हैं, और फिर मजबूत भी बनाती हैं। क्योंकि बर्ताव याद रह जाते हैं और मुस्कान, सिर्फ एक आदत बन जाती है।

Comments

Popular posts from this blog

Battles Behind Every Smile

Freedom In Love