मैं टूट चुका हूं…मगर…मैं हारा नहीँ हूँ…

हर काम में किस्मत आज़माता हूँ अपनी, ज़िन्दगी ने भी ठान लिया है, सिर्फ और सिर्फ थकाएगी... आज शाम भी थक कर चूर हो गया..
मगर मैं हारा नहीँ हूँ
चलो माना...
"हर किसी को मुकम्मल जहान नहीँ मिलता" पर जो मिला, उसमें न सुकून का एहसास हुआ, न ही तसल्ली का... लोगों की दलीलें सुन-सुन कर थक गया हूँ...
मगर मैं हारा नहीँ हूँ
सम्भलने के लिये सहारा भी नहीँ चाहिये, और बिना सहारे के...
अब सम्भल पाना भी आसान कहाँ?
लगता है अब हार जाऊँगा
"अब मुझे हार ही जाना चाहिये,"
"नही... लड़ते रहो"
"अब मैं थक गया हूँ "
"फ़िर भी लड़ते रहो"
खुद से लड़-लड़ कर अब ऊब गया हूँ... सच कहूँ... बहुत पहले ही ऊब गया था, मैं हर तरफ से टुकडों में अब बिखर चुका हूं ।
मैं टूट चुका हूं...मगर...मैं हारा नहीँ हूँ...।

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