महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि
केवल एक पर्व नहीं, यह एक अनुभूति है, यह एक आह्वान है, यह वह रात है जब
पूरा ब्रह्मांड शिवमय हो जाता है, जब हर धड़कन "हर हर महादेव" के साथ
गूंज उठती है। यह वह रात है जब महादेव के ध्यान में डूब जाने से
ही मोक्ष की अनुभूति होने लगती है। महादेव, अनादि हैं, अव्यक्त हैं, अविनाशी हैं। वे वह शक्ति हैं जो संसार की रचना करती है, उसे संभालती है
और अंत में उसे अपने भीतर समा लेती है। वे ध्यान में लीन रहते हैं, फिर भी हर
प्राणी की हर सांस में बसे हुए हैं। वे वैराग्य के प्रतीक हैं, फिर भी प्रेम की
पराकाष्ठा भी वही हैं। वे शांत भी हैं और संहारक भी। वे श्मशान के स्वामी भी हैं
और ब्रह्मांड के अधिपति भी। शिव ही वह सत्य हैं जिसे समझने के बाद कुछ और जानने की
आवश्यकता नहीं रह जाती।
महादेव की उपासना केवल
पूजा-अर्चना नहीं, यह जीवन को जानने
का मार्ग है। उनके हर रूप, हर प्रतीक में
एक गहरी सीख छिपी है:
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त्रिनेत्र – महादेव की तीसरी आँख
केवल क्रोध का प्रतीक नहीं, यह जागरूकता का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि
संसार को केवल आँखों से नहीं, ज्ञान से देखो। जब भी
मोह, अहंकार या अज्ञान जीवन पर हावी हो, तब इस तीसरी आँख को खोलो और
सत्य को पहचानो।
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नीलकंठ – जब समुद्र मंथन
में हलाहल निकला, तो महादेव ने उसे अपने
गले में धारण कर लिया। यह सिखाता है कि जीवन में चाहे कितना भी विष क्यों न आए, हमें उसे सहन
करने की शक्ति चाहिए, न कि उसे दूसरों पर उड़ेलने की। यह सिखाता है कि
सच्चा बल वही है जो दुनिया के कष्टों को अपने भीतर समा ले और फिर भी शांत बना रहे।
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डमरू – जब महादेव डमरू बजाते हैं, तो सृष्टि के स्वर जाग उठते हैं। यह डमरू हमें
याद दिलाता है कि जीवन भी एक लय है, एक संगीत है।
यदि हम इस लय को समझ लें, तो कोई भी स्थिति हमें विचलित नहीं कर सकती।
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तांडव – महादेव का तांडव केवल
विनाश का नृत्य नहीं, यह एक संदेश है कि परिवर्तन ही
जीवन का नियम है। जो आज है, वह कल नहीं रहेगा, और जो मिटता है, वह किसी नए रूप
में फिर जन्म लेता है।
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अर्धनारीश्वर – शिव और शक्ति का
यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन में संतुलन सबसे ज़रूरी है। शक्ति बिना शिव
केवल मौन हैं, और शिव बिना शक्ति केवल ऊर्जा। पुरुष और स्त्री, विचार और भावना, कर्म और
ध्यान—इनका संतुलन ही पूर्णता देता है।
महाशिवरात्रि
स्वयं को शिव के करीब ले जाने का अवसर है। यह आत्मा के गहरे अंधकार से प्रकाश की
ओर जाने की रात है। यह संसार के झूठे बंधनों से मुक्त होकर, स्वयं के असली स्वरूप को पहचानने की रात है। यह देवाधिदेव महादेव के चरणों
में स्वयं को समर्पित करने की रात है। यह हमारे भीतर उनकी उपस्थिति महसूस करने की
रात है। जब हम अपना अहंकार त्यागकर, सच्चे मन से शिव का
स्मरण करते हैं, तब शिव हमारे अंतःकरण में जागते हैं। यही
जागरण मुक्ति है, यही शिवत्व की अनुभूति है। आज की इस पावन महाशिवरात्रि
पर मैं अपनी सभी चिंताओं, दुखों और मोह को
महादेव के चरणों में अर्पित करता हूँ। मैं मौन होकर उनकी उपस्थिति को अनुभव करता हूँ, क्योंकि वे यहीं हैं- मेरे भीतर, मेरे साथ, हर पल। वे ही
सत्य हैं, वे ही शांति हैं, वे ही मोक्ष हैं। महादेव के चरणों
में अपना सर्वस्व समर्पित करता हूँ।
ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव…🚩
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