नींव की ईंट

आज दो ईंटो के बीच की बातें सुन रहा था, और ये तय  करना मुश्किल था मेरे लिए कि इन दोनों में से ताकतवर कौन सी ईंट है। एक ईंट है जो इमारत के नींव की ईंट है, पहली ईंट, जिस पर वो इमारत टिकी हुई है, और दूसरी ईंट है छत के ऊपर वाली ईंट, जहाँ से पूरा शहर दिखता है। चाहे Sunrise हो या Sunset. सूरज के उगने या ढलने के लम्हा सबसे खुबसूरत उस एक कोने, उस एक जगह से, जहाँ छत की सबसे ऊपरी ईंट है। वो देखती है बड़े गुरुर से की मेरा आसमान के साथ रिश्ता है, और नीचे दबी वो नींव की ईंट सवाल करती है, कि क्या कभी मेरे योगदान के बारे में बात नहीं करेगा कोई ?  क्या ये जमीन पर चलने वाली गाड़ियाँ और इनमें बैठे लोग सिर्फ और सिर्फ ऊँचाई को देखते हैं? शानो शौकत को और उस छत वाली ईंट को हीं देखते हैं? उसे हीं सलाम करते हैं? 
ऐसा नहीं है। मुझे बस आपको बस यह याद दिलाना है कि, हो सकता है कि आप इस इमारत के नींव की ईंट की तरह हैं, आपका श्रम, आपकी मेहनत, आपका तप, आपकी योगदान , हो सकता है कि लोगों की नज़रों में न हो, लेकिन आपकी नजरों में होना बहुत जरूरी है। उस नींव की ईंट का  अपने आप पे भरोसा ,प्यार, मान, इज्जत, ख़ुद के लिए उतना हो तो बहुत है। किसी भी नींव की ईंट को यह नहीं भूलना चाहिए कि वो नींव की ईंट है, वो अगर न हो तो इमारत टिकेगी हीं नहीं, सब मलबा ही मलबा हो जाएगा।
तो अगर आपने कभी भी ऐसा महसूस किया है तो, सलाम है आपको, आप नींव की ईंट हैं। अपने आप को अभी कमजोर मत समझिए , ये कभी मत सोचिए कि लोग सिर्फ और सिर्फ ऊंचाई की उस छत वाली ईंट को हीं देखने वाले हैं। हमारे जैसे कुछ होते हैं जो नींव देखते हैं, मजबूती देखते हैं। और रिश्ते, ज़िन्दगी सब तो नींव की ईंट पर हीं तो टिकी है, जिस दिन ये हिली उस दिन पूरी इमारत हिल जाएगी।

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