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Showing posts from July, 2021

सुनों, तुम्हारी याद आती है

बाहर तेज बारिश हो रही है, और इधर मैं खिड़की से बाहर देखते हुए सोच रहा हूं, कैसा होगा वो शहर, वो मेरा अपना बनारस, जिसे मैं पीछे उसी घाट पर  छोड़ आया हूं, जहाँ एक नदी उसे हल्के सहलाते हुए अब भी बह रही है, एक सूरज अब भी वहीं उन्हीं घाटों के सामने उगता है, और शाम की आरती के साथ वहीं ढल जाता है। कुछ नावें जो रोज़ उन्हें चूमती हुई ठहर जाती है, और उन्हीं में से एक पर मेरे मन की आंखे अब भी वहीं ठहरी हुई हैं। ठीक उसी घाट के सामने जहां तुम मुझे पहली बार बैठी मिली थी, और जहां से अपने अंदर एक पूरा बनारस भर कर तुमसे अलग हुआ था। मैं जितना भर सकता था उतना तो भर लिया पर मन वहीं छूट गया। उम्मीद है, एक दिन वापस जरूर आउंगा, तुमसे उसी घाट के किनारे लगी नाव पर मिलने जहाँ से हम अलग हुए थे और फिर से उन्हीं गलियों में भटकने , जिनमें हम कभी हुड़दंग मचाते थे, उन्हीं टपरियों पर वापस फिर से  बिना किसी फ़िक्र के उन्मुक्त हो कर महफ़िल ज़माने और अंत में थक कर घाटों के आगोश में सुकुन के साथ रातें काटने। तो बनारस, तुम इंतज़ार करना इस पागल लड़के का , जो तुम्हारे साथ बिताई हुई शामें, सुबहें और रातों को अब भी याद करता है...

प्रेम और शिवत्व

जिस तरह से हजारों चोटों और सैकड़ों बेवफ़ाइयों के बाद भी " प्रेम " शास्वत है , सत्य है , अडिग है , एक प्रेम ही है जो सम्पूर्ण विश्व का आधार है , मनुष्य के सभी भावों में प्यार का भाव सबसे अधिक बलशाली होता है , लोग दुश्मनी पीढ़ियों निभाते हैं और प्रेम में कभी कभी अपने प्राणों का परित्याग कर सदा के लिए अमर हो जाते हैं , प्रेम की कहानियाँ " अमरत्व " लेकर जन्म लेती हैं , प्रेम और शिव में ज्यादा अंतर नहीं है , जैसे शिव का अर्थ होता है , " जो नहीं है "। जिसे विज्ञान आज डार्क मैटर कहती है हिन्दू धर्म में उसी अनछुए , ख़ाली दिखता है पर होता नहीं , हर प्रकाश का कोई स्रोत होता है पर अंधकार का कोई स्रोत नहीं होता , वो स्वयं में सत्य है , शिव का अर्थ बस इतना सा ही है , उसी तरह से क्रोध , काम , तृष्णा , ईर्ष्या सबका कुछ ना कुछ स्रोत होता है पर प्रेम शास्वत होता है , पर आज इसी प्रेम को लेकर लोगों के मन में बाधाएँ होती हैं , सवाल होते हैं , अड़चने होती हैं , जितना प्रेम को बदनाम किया गया है शायद शिव को भी उतना ही छला गया है , हमारा मन ये प्रश्न तो कर लेता है कि शंकर तो भाँग खाया...

Modern बंधुआ मजदूर

ये ऊँची इमारतों की चौथी, पांचवी मंजिल पर बक्से जैसी चारदीवारी में Confined, कांच की खिड़कियों से बाहर बारिश को एक Fixed दूरी से टकटकी लगा देखते, जो चेहरे हैं ना, ये दरअसल Surrender कर चुके उम्र कैद काट रहें कैदी हैं, जो बूंदों में आज़ादी टटोलते हैं। जो बाहर निकल, हाथ फैला, भींगते हुए कीचड़ में छलांग मार, Helicopter के माफ़िक़ तेजी से दौड़ लगाकर उड़ जाने को आतुर हैं। अपने गांव, क़स्बे  के Aerodrome  तक, पर जैसे ही कोशिश करने का सोचते हैं, अरे, यह क्या ? हाथ उठने वाला हीं था कि Formal Shirt की बटन पर लगी Cufflinks नें रास्ता रोक दिया और Wallet में रखा Credit Card अट्टाहास कर उठा इस दुस्साहस पर, जिससे में रुआँसा हो गया, कोशिशें थम गयीं... तभी गले में बंधी वो Sophisticated Tie Knot उलझती चली गयी। एक हीं टिस... उम्रकैद की बख्शीश भला चाहिए किसे ? सीधे आज़ाद कर दो न। तभी याद आता है , जल्दी चलो खाना खाने वरना फिर Time  हीं नहीं मिलेगा। आँसू पलकों पर ही रुक गए, क्यूंकि उन्हें भी पता है कि , जीने वाली सदी बिसर चुकी , अब तो सब पेट - पैकेज और प्रोमोशन का सवाल है।  इन्हें देखिएगा कभी ध्या...

पहली नौकरी

पहली नौकरी वाकई में एक लापरवाह लौंडे को एक जिम्मेदार बेटे में बदल कर रख देती है। जिसके लिए वो अपना घर छोड़ कर, कभी कभी आने वाले पराए हो जाते हैं। यह एक एहसास दिलाती है कि वाकई पैसा पेड़ पर नहीं उगता,। यह हर काम करने वाले के प्रति आदर और सम्मान बढ़ा देता है। अब उसे जद्दोज़हत करता हर एक इंसान चाहे वो Pamplete बांटने वाला हो, या Marketing के लिए Call करने वाला, सब में उसे घर चलता एक बाप, या अपने परिवार के लिए रोटी कमाता एक बेटा दिखता है। उसे इस बात का एहसास होता है कि, अपनी तरह उन सब की भी रोजी रोटी है। अब उन्हें इस बात का एहसास होता है कि अपनी तरह उन सब की भी रोज़ी रोटी है। यह उन्हें इस बात का एहसास दिलाती है कि क्यों पिताजी एक Shirt, Collar फटने तक चलाते थे। कैसे महीने के अंत में पैसे न होने पर Adjust किया जाता है, और कैसा लगता है जब साल भर दिन रात एक कर देने वाली मेहनत के बाद भी कुल जमा 2500  Per Month हीं बढ़ पाते हैं। अब वो हर छोटी से छोटी चीज़ के लिए पिता से ज़िद करने वाले लड़के से बदल कर, मैं बिल्कुल ठीक हूं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है यहां, आप लोग अपना ख़्याल रखिएगा, बोलकर अपनी जरुरतों को ...

Imperfections

पता है? हम सब यह चाहते हैं कि ज़िंदगी एकदम Perfect  हो। लेकिन असल खूबसूरती Imperfections में ही होती है। जैसे, चेहरे की झुर्रियां, कितनी हीं कहानियां छुपी होती है इनमें। कोई निशान या तिल, जो पहचान बन जाता है। टेढ़े मेढ़े दातों की हँसी, जिनमें खुशी झलकती है, जिन्हें किसी Filter की जरूरत नहीं पड़ती। काले बालों में आया सफ़ेद बाल, उम्र के अगले पड़ाव की कहानी। बिस्तर की बिखरी हुई सी चादर, प्यार की निशानी, जैसे हर सिलवट में एक खुशबू है, एक एहसास है। माँ के हाथ, जैसे हर लकीर नें दुआ मांगी हो। उनके Imperfect हाथों के छूते हीं सारी दुनिया हीं Perfect  लगती है, सारा दर्द हीं कहीं गायब हो जाता है। सबसे महफ़ूज हाथ होते हैं ये। खाना खाने के बाद वाले खाली बर्तन, एक जूठी प्लेट बहुत बड़ी नेमत होती है। अपने पक्के यार की शादी के बारात में नाचना, खुशी हीं अलग होती है, जिसका कोई कोर्स नहीं होता। ये बाद Imperfect सा Dance होता है, मजे से भरपुर। गाड़ी के ऊपर गली के इस Tommy की छाप का होना। किसी गमले में पौधा लगते वक़्त उंगलियों में मिट्टी का लगना।  ऐसा है न कि, आप, मैं, हम सब, जैसे हैं न , वैसे हीं खूबस...

लौंडई

दुनिया कितनी भी Upgrade हो जाए, लेकिन लौंडई कभी विलुप्त नहीं होगी । आज भी अजय देवगन की "दिलवाले" वाली Hair Style में कहीं न कहीं , कोई न कोई , सपना के सपनों में खोया होगा। आज भी कहीं फंस रही होगी पुरानी CD  की कैसेट साईकल की दो तीलियों के बीच। आज भी कहीं कोई आशिक़ बना रहा होगा अपनी कॉपी के पीछे तीर वाला दिल। आज भी कोई लौंडा चिलम खिंच रहा होगा, पुलिया पे बैठ के। कोई न कोई जी रहा होगा वो ज़िन्दगी... जो मुक्त है सभी Protocol से, जहाँ वास्तविकता है... बिना किसी थोथेबाजी के। जहाँ Interstellar झेलने वाला चुतियापा नहीं होता। जहाँ खुल के नाच होता है "कट्टो गिलहरी छमक छल्लों रानी" वाले गाने पे। जहाँ संतुष्टि किसी दिखावे की मोहताज नहीं। क्योंकि अपने व्यक्तित्व को परिवर्तित न करना हीं अखंड सत्य है, यथार्थ है। ये मात्र एक गांव की छवि नहीं है, बल्कि उस शहर की भी है, जहाँ हम जैसे लौंडे रहते हैं। जो Mall के पांचवी मंजिल वाले पब में Pitbull  के गाने Enjoy  करने के बाद घर में आ कर फुल बेस में 90s का गाना सुनकर हीं चैन पाते हैं, जिन्हें Scarlett Johansson सिर्फ Pictures  में अच्छी लगती...